काहे को रोए… काहे को रोए!
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Picture courtesy: Latika Teotia |
काहे को रोए… काहे को रोए!
बनेगी आशा… इक दिन…
तेरी ये निराशा!
काहे को रोए… चाहे जो होए… !
काहे को रोए… चाहे जो होए…!
सफल होगी तेरी आराधना…!
काहे को रोए… काहे को रोए…!
कही पे है दुखःकी छाया…
कही पे है खुशियोंकी धूप!
बुरा-भला जैसा भी है…
यही तो है बगिया का रूप,
फूलोंसे, काटोंसे…. माली ने हार पिरोये!
काहे को रोए… चाहे जो होए…
सफल होगी तेरी… आराधना…!
क्या है ये सुख… क्या है ये दुखः? धूप-छांव का खेल… या भले-बुरे का मेल? ये बगिया रूपी जीवन… अस्तित्व… आखिर है क्या? क्यूं है कही पर सुख की छाया और क्यूं है कही पर दुखःकी धूप???
जीवन एक समग्रता का नाम है… संपूर्णता का नाम है….जिसमे फूलोंके साथ कांटे भी समाये है! फिर क्यूं है हमे फूलोंसे लगाव और कांटोसे अलगाव??? आखीर… चाहते क्या है हम जीवन से??? क्या है हमारी, सच मे ‘आराधना’… ‘प्रार्थना’ ?? क्यूं है ये ‘आराधना’… ये ‘प्रार्थना’??? क्यूं नही पूरी हो पाती ये ‘आराधना’??? क्या हम सिर्फ सुखही सुख चाहते है… शाश्वत सुख? सही मायने मे यहा हर कोई ‘शाश्वत-सुख’ ही चाहता है…हर कोई शाश्वतता ही ढूंड रहा है…! और वोह मिल नही पाती है इसिलिये दुखः लगता है! क्यूं नही मिल पाता ये… शाश्वत-सुख???
क्या है असल मे ‘आराधना’??? कहा थी ये आराधना… जन्म से पहेले… जीवनकी शुरुवात से पहेले? क्या ये ‘आराधना’ ये ‘प्रार्थना’ मौजूद थी तब???? क्यूं नही थी मौजूद ये… जन्मसे पहेले??? क्या है असल मे ‘आराधना’??? कहासे आयी ये आराधना… अचानक…जन्म के साथ-साथ? क्या ये ‘राधा’ का जन्म है? ‘राधा’ याने ‘साधक'(Seeker) …जो साधना चाहता है…! ‘राधा’ याने ‘अपूर्णता का आभास’ … जो अब ‘पूर्णसे’ जुडना चाहती है… पूर्ण से एक-रूप होना चाहती है! लेकिन ये ‘राधा’… अब…. ‘आ’ और ‘ना’ मे घिर गयी है… फंस गयी है….. “आ-राधा-ना”! लेकिन…क्या है ये ‘आ’ और ‘ना’…? ‘आ’ मतलब ‘आहे'( है) और ‘ना’ मतलब ‘नाही’ (नही)! राधा फंस गयी है अब… ‘है और नही-है’ के जाल मे…. आभास मे… संशय मे! जन्मके पहले ये आभास नही था… ना ही कोई संशय था… ना ही कोई ‘अपूर्णता का आभास’ था… ‘राधा’ का अभाव था… याने तब संपूर्णता मौजूद थी! ‘कृष्ण’ याने संपूर्णता… समग्रता… सर्वात्मकता… एकात्मकताका प्रतीक! जन्म के पहले दो नही थे इसिलिये दूरी भी नही थी… दूरी नही थी इसिलिये… अधूरापन नही था…..अधुरापन नही था इसिलिये सुखकी चाह नही थी और दुखःकी चिंता नही थी!
जब तक ‘राधा’ मौजूद है तब तक ‘कृष्ण’ नही…’राधा’की अनुपस्थिती याने ‘कृष्ण’ कि उपस्थिती! जैसेही ‘राधा’ यानेकी ‘साधक-भाव’ अनुपस्थित हो जाती है… याने ‘अपूर्णता का भास’ मिट जाता है फिर ‘राधा’ और ‘कृष्ण’ संम्पूर्णताकी सिर्फ दो अभिव्यक्ती बनकर रह जाती है! ‘राधा’का मिट जाना याने ‘आराधना’ पूरी हो जाना! जहा दो मिट जाते है… दूरी भी मिट जाती है! आशा मिट जाती है फिर निराशा कहा होगी? आशा और निराशा एक ही सिक्के के दो अंग है! आशा का मिटना याने ‘राधा’ का कृष्णमे विलीन हो जाना! फिर कैसा रोना?
काहे को रोए… चाहे जो होए…!
सफल होगी तेरी… आराधना…!
‘राधा’के होने मे… ‘राधा’के रोने मे भी एक रस है प्रेम का…भाव का…विरह का….भक्ती का! ‘राधा’ एक मौका है अमृत तक पहुचनेका.. ‘कृष्ण’ से मिलन का! ‘राधा’ के होनेमे ही ‘कृष्ण‘ के होनेकी संभावना छुपी है और फिर ‘राधा’के खो जाने मे अमृत ही अमृत है जिसका कोइ ओर-छोर नही! आइये……आप सबको प्रेमकी इस ‘अमृत नगरी’ मे आमंत्रण है!
दीया टूटे तो माटी बने…
जले तो ये ज्योती बने!
आंसू बहे तो है पानी…
रुके तो ये मोती बने,
ये मोती… आंखोंकी पूंजी है, ये ना खोये!
काहे को रोए… चाहे जो होए…!
सफल होगी तेरी… आराधना…!
शुभचिंतन
जय गुरु
-नितीन राम
११ जुलै २०१२
http://www.abideinself.blogspot.com/
Whatever the Question, Love is the Answer!
सलाम श्री आनंद बख्शीजी! RIP Rajesh Khanna!
🙂 thanks again and again…
Thank you so much
Thank you soo much
Thank you Nitinji for you blessings.
humble pranaams
Thank you